प्यार अगर ऑंखों में हो तो कंटक वन भी खिल जाता है नफ़रत भरी निगाहें हों तो खिला फूल भी मुर्झाता है प्यार प्रतिष्ठित मन में हो तो विष भी पी जाती है मीरा प्यार हेतु ईश्वर आता है धरती पर धर विविध शरीरा लेकिन प्यार न जग में होता तो दुनिया होती वैसे ही जैसे कोई उपवन हो बहार के बिना